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इच्छा टेक्सटाइल्स की सह-मालिक रमा चोपड़ा ने बताया की साड़ी केवल नारी का शृंगार नहीं, बल्कि उसकी शक्ति, संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक है।

 इच्छा टेक्सटाइल्स की सह-मालिक रमा चोपड़ा ने बताया की साड़ी केवल नारी का शृंगार नहीं, बल्कि उसकी शक्ति, संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक है।
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इच्छा टेक्सटाइल्स की सह-मालिक रमा चोपड़ा ने बताया की साड़ी केवल नारी का शृंगार नहीं, बल्कि उसकी शक्ति, संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक है।

(साड़ी भारतीयता और नारीत्व का प्रतीक)

उत्तराखंड (देहरादून) शनिवार, 21 दिसम्बर 2024

साड़ी केवल एक परिधान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और नारीत्व का अद्भुत प्रतीक है। यह छह गज की साड़ी नारी के गौरव, शक्ति और सौंदर्य को परिभाषित करती है।

भारत के लगभग हर राज्य में साड़ी पहनी जाती है, और हर क्षेत्र की साड़ी अपने आप में अनूठी होती है। बनारसी साड़ी का शाही वैभव, कांजीवरम की पारंपरिक चमक, पटोला की बुनाई, और चंदेरी की नजाकत – हर साड़ी अपने क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को संजोए हुए है।

साड़ी: हर नारी का साथी

चाहे खेतों में काम करने वाली महिला हो या किसी दूतावास में कार्यरत अधिकारी, साड़ी ने हर महिला को गरिमा और आत्मविश्वास दिया है। यह ऐसा परिधान है जिसमें नारी न केवल खूबसूरत दिखती है, बल्कि सहज भी महसूस करती है। साड़ी नारी के हर रूप को सजाती है – ममता से भरी माँ, कर्मठ अधिकारी, या संस्कृति की संरक्षक।

साड़ी और कारीगरों की पहचान

साड़ी केवल नारी की पहचान नहीं, बल्कि उन बुनकरों और कारीगरों की भी पहचान है, जिन्होंने पीढ़ियों से इसे अपने हुनर से संवारा है। हर धागे में उनकी मेहनत, परंपरा और कला झलकती है। इसे पहनना केवल एक परिधान धारण करना नहीं, बल्कि उनकी कला को सम्मान देना है।

राष्ट्रीय परिधान बनने का अधिकार

साड़ी भारत की विविधता में एकता का प्रतीक है। यह हर धर्म, हर वर्ग, और हर उम्र की महिलाओं द्वारा पहनी जाती है। इसे राष्ट्रीय परिधान का दर्जा देना न केवल इसकी गरिमा को बढ़ाएगा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर को भी वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करेगा।

निष्कर्ष

साड़ी केवल नारी का शृंगार नहीं, बल्कि उसकी शक्ति, संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक है। यह भारतीयता की पहचान है और इसे राष्ट्रीय परिधान का स्थान मिलना चाहिए। साड़ी में केवल परिधान नहीं, बल्कि भारत का गौरव छुपा है।

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