हिन्दू धर्म में मुण्डन संस्कार का विशेष महत्व है।
हिन्दू धर्म में मुण्डन संस्कार का विशेष महत्व है।
(तृतीय वर्ष में ही मुंडन संस्कार करना चाहिए)
उत्तराखंड (देहरादून) सोमवार, 11 अप्रैल 2022
16 संस्कारों में एक है मुंडन संस्कार16 संस्कारों में यह आठवें नंबर का संस्कार है। सातवें संस्कार अन्नप्राशन से शिशु को मां के दूध के अलावा भी अन्न आदि खिलाना प्रारंभ कर दिया जाता है। आठवीं मुंडन संस्कार के महत्व एवं उसकी विधि के बारे में माना जाता है कि शिशु जब माता के गर्भ से बाहर आता है तो उस समय उसके बाल पूर्ण रूप से अशुद्ध होते हैं। इन अशुद्ध बालों की अशुद्ध दूर करने की परिक्रिया को संस्कार कहा जाता है।
हमारे शीर्ष मैं ही मस्तिष्क भी होता है इसलिए इस संस्कार को मस्तिष्क की पूजा करने का संस्कार भी माना जाता है। जातक का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहे उसके मस्तिष्क में सकारात्मक विचारों का वह सार्थक रूप से सदुपयोग कर सके एवं नकारात्मक विचार उसके मस्तिष्क में न रहे इसी उद्देश्य से मुंडन संस्कार किया जाता है। इस संस्कार से शिशु के तेज में वृद्धि होती है और उसके मस्तिष्क में भी सकारात्मक विचारों में वृद्धि होती है। मनुस्मृति के अनुसार प्रथम एवं तृतीय वर्ष में यह संस्कार करना चाहिए।
जहां तक संभव हो सके तृतीय वर्ष में ही मुंडन संस्कार करना चाहिए। इसका कारण यह है कि शिशु का कपाल शुरू में कोमल रहता है जो कि 2 या 3 साल की अवस्था के पश्चात कठोर होने लगता है। ऐसे में सिर के कुछ रोम छिद्र तो गर्भावस्था से ही बंद होते हैं। मुंडन संस्कार द्वारा शिशु के सिर की गंदगी आदि नष्ट हो जाती है इससे रोम छिद्र खुल जाते हैं और नए एवं घने मजबूत बाल आने लगते हैं। यह मस्तिष्क की रक्षा हेतु भी आवश्यक होता है।
मुंडन संस्कार की विधि
हमारे सनातन धर्म के शास्त्रों में वर्णित है की, , ” तेन ते आयुषे वपासि सुश्लोकाय स्वस्त्ये” अ इसका तात्पर्य यह है कि चूड़ाकर्म संस्कार से जातक दीर्घायु होता है। चार वेदों में यजुर्वेद तो यह भी कहता है कि दीर्घायु के लिए अन्न जल ग्रहण करने में सक्षम करने में उत्पादकता के लिए ऐश्वर्य के लिए सुंदर संतान के लिए शक्ति व पराक्रम के लिए चूड़ाकर्म संस्कार अवश्य करना चाहिए। चूड़ाकर्म संस्कार के दिन प्रातः बालक को स्नान कराने के पश्चात बालक के नाम से पूर्वांग कर्म करवाना चाहिए पूर्वांग कर्म में किसी सुयोग्य ब्राह्मण द्वारा गणेश पूजन स्वस्तिवाचन मातृका पूजन एवं नवग्रह पूजन के उपरांत बालक का मुंडन करना चाहिए बालक के सिर के बालों को कांसे की थाली में गोबर के साथ गाय के गोबर के साथ रखना चाहिए तदुपरांत बालक को पुनः स्नान करवाने के पश्चात उसके शीर्ष में स्वस्ति या ओम चिन्ह अंकित करना चाहिए। तदुपरांत बालक के केसों को संभाल के रखना चाहिए कुछ लोग उन बालों को विसर्जन कर देते हैं ध्यान रहे उन बालों को विसर्जन नहीं करना चाहिए उन्हें संभाल के रखा जाता है। जब बालक का यज्ञोपवित संस्कार अर्थात जनेऊ संस्कार होता है उस दिन मुंडन के दौरान चूड़ाकरण संस्कार वाले बालों को एक साथ विसर्जन किया जाता है।