आचार्य मनोज जी ने बताया की रक्षा बंधन दोपहर 01:31 के बाद भद्रा समाप्ति पर मनाया जाएगा। - Swastik Mail
Breaking News
तीसरे रोहिताश मेमोरियल अंडर 17 बालक अंतर विद्यालयी फुटबॉल टूर्नामेंट मैं द हेरिटेज स्कूल नॉर्थ केंपस और न्यू दून ब्लॉसम स्कूल के बीच खेला गया।सिख संस्थाओं और राष्ट्र वादी सिख मोर्चा ने केंद्र व राज्य सरकारों से नवम गुरु तेग बहादुर जी हिन्द की चादर के 350 वे शहीदी पर्व के अवकाश को 24 नवंबर की जगह 25 नवंबर को अवकाश घोषित करें।इंदिरा गांधी की 106वीं जयंती पर संयुक्त नागरिक संगठन द्वारा  विचार गोष्ठी का आयोजन किया।स्वर्गीय पिता का लिया ऋण चुकाने में असमर्थ 2 बहने चित्रा व हेतल; ने पढाई व मकान बचाने की डीएम से लगाई गुहार।तीसरे रोहिताश मेमोरियल अंडर 17 बालक अंतरविद्यालयी फुटबॉल टूर्नामेंट में न्यू दून ब्लॉसम स्कूल के खिलाड़ियों का विजय अभियान लगातार जारी।

आचार्य मनोज जी ने बताया की रक्षा बंधन दोपहर 01:31 के बाद भद्रा समाप्ति पर मनाया जाएगा।

 आचार्य मनोज जी ने बताया की रक्षा बंधन दोपहर 01:31 के बाद भद्रा समाप्ति पर मनाया जाएगा।
Spread the love

आचार्य मनोज जी ने बताया की रक्षा बंधन दोपहर 01:31 के बाद भद्रा समाप्ति पर मनाया जाएगा।

(भद्रा भगवान शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री हैं)

उत्तराखंड (देहरादून) रविवार, 18 अगस्त 2024

आचार्य मनोज जी ने बताया की रक्षा बंधन दोपहर 01:31 के बाद भद्रा समाप्ति पर मनाया जाएगा।

आचार्य मनोज जी से आज जानते है की क्या है भद्रा, कौन है भद्रा और भद्रा में क्या होता है।

भद्रा कौन हैं धार्मिक दृष्टिकोण की बात करें तो इसके अनुसार भद्रा भगवान शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री हैं। यह बहुत सुंदर थी लेकिन इनका स्वभाव काफी कठोर था। उनके उस स्वभाव को सामान्य रूप से नियंत्रित करने हेतु उन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण के रूप में मान्यता दी गई। जब कभी भी किसी शुभ तथा मांगलिक कार्य के लिए शुभ मुहूर्त देखा जाता है तो उसमें भद्रा का विचार विशेष रूप से किया जाता है और भद्रा का समय त्यागकर अन्य मुहूर्त में ही कोई शुभ कार्य किया जाता है। लेकिन यह देखा गया है कि भद्रा सदैव ही अशुभ नहीं होती बल्कि कुछ विशेष प्रकार के कार्यों में इसका वास अच्छे परिणाम भी देता है।

भद्रा की गणना

तिथिवारं च नक्षत्रं योग: करणमेव च ।

यत्रैतत्पञ्चकं स्पष्टं पञ्चाङ्गं तन्निगद्यते ।।

तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण मुहूर्त के अंतर्गत पंचांग के मुख्य भाग हैं। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। कुल मिलाकर 11 करण होते हैं, जिनमें से चार करण शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न अचर होते हैं और शेष सात करण बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि चर होते हैं। इनमें से विष्टि करण को ही भद्रा कहा जाता है। चर होने के कारण ये सदैव गतिशील होती है। जब भी पंचांग की शुद्धि की जाती है तो उस समय भद्रा को विशेष महत्व दिया जाता है।

शुक्ले पूर्वार्धेऽष्टमीपञ्चदश्योर्भद्वैकादश्यां चतुर्ध्या परार्धे ।

कृष्णेऽन्त्यार्धे स्यात्तृतीयादशम्योः पूर्वे भागे सप्तमीशम्भुतिष्योः।। १॥ ४३ ॥

भद्रा ज्ञान – शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ष तथा चतुर्थी और एकादशी के उतरार्ध में भद्रा (विष्टि) करण होता है। कृष्णपक्ष की तृतीया दशमी के पूर्वार्ष में तथा सप्तमी और चतुदर्शी के पूर्वार्ध में भद्रा होती है। तिथि का पूरा मान निकालकर उसमें दो का भाग देने से आधा पूर्वार्ध और आघा उत्तरार्ध होता है।

“रत्नकोश” ग्रन्थ में भद्रा के नाम और नाम सदृश फल भी बताया गया है। ये नाम क्रमशः (१) हंसी (२) नन्दीनि, (३) त्रिशिरा, (४) सुमुखी, (५) करालिका, (६) वैकृति, (७) रौद्रमुखी, (८) चतुर्मुखी ।

अतः मुहूर्त के अंतर्गत भद्रा का विचार मुख्य रूप से किया जाता है क्योंकि यह वास्तव में स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक में अपना प्रभाव दिखाती है। इसलिए किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए भद्रा वास का विचार किया जाता है।

भद्रा का वास कैसे ज्ञात किया जाता है

कुम्भ कर्क द्वये मर्त्ये स्वर्गेऽब्जेऽजात्त्रयेऽलिंगे।

स्त्री धनुर्जूकनक्रेऽधो भद्रा तत्रैव तत्फलं।।१।।४५।। मु.चि.

जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होता है तो भद्रा स्वर्ग लोक में मानी जाती है और उर्ध्वमुखी होती है। जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है तो भद्रा का वास पाताल में माना जाता है और ऐसे में भद्रा अधोमुखी होती है। वहीं जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में स्थित होता है तो भद्रा का निवास भूलोक अर्थात पृथ्वी लोक पर माना जाता है और ऐसे में भद्रा सम्मुख होती है। उर्ध्वमुखी होने के कारण भद्रा का मुंह ऊपर की ओर होगा तथा अधोमुखी होने के कारण नीचे की तरफ होगा तथा सम्मुख होने पर भद्रा पूर्ण रूप से प्रभाव दिखाएगी।

मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार भद्रा का वास जिस लोक में भी होता है वहां भद्रा का विशेष रूप से प्रभाव माना जाता है। ऐसी स्थिति में जब चंद्रमा कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि और मीन राशि में होगा तो भद्रा का वास भूलोक में होने से भद्रा सम्मुख होगी और पूर्ण रूप से पृथ्वी लोक पर अपना प्रभाव दिखाएगी। यही अवधि पृथ्वी लोक पर किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए वर्जित मानी जाती है,

स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम।

मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी।।

पियूष धारा के अनुसार जब भद्रा का वास स्वर्ग लोक में हो तो वह शुभ फल दायक तथा पाताल लोक में होगा तब वह धन देने वाली होगी। परन्तु मृत्युलोक पर स्थित भद्रा कार्य विनाशक होती है।

स्थिताभूर्लोस्था भद्रा सदात्याज्या स्वर्गपातालगा शुभा।

मुहूर्त मार्तण्ड के अनुसार जब भी भद्रा भूलोक में होगी तो उसका सदैव त्याग करना चाहिए और जब वह स्वर्ग तथा पाताल लोक में हो तो शुभ फल प्रदान करने वाली होगी।

अर्थात जब भी चंद्रमा का गोचर कर्क राशि, सिंह, कुंभ राशि तथा मीन राशि में होगा तो भद्रा पृथ्वी लोक पर होगी और कष्टकारी होगी। ऐसी भद्रा का त्याग करना श्रेयस्कर होगा।

भद्रायां द्वे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।

इसलिए भद्रा काल मे श्रावणी(रक्षाबंधन) फाल्गुनी (होली) नहीं करनी चाहिए।

इस वर्ष रक्षाबंधन 19 -08-2024 को मनाया जाएगा। इस दिन पूर्णिमा तिथि होने के कारण भद्रा होगी और मकर राशि मे चंद्र होने से इसका वास पाताल लोक में होगा। परंतु रक्षाबंधन में भद्रा काल त्याज्य है इसलिए इस वर्ष रक्षा बंधन दोपहर 01:31 के बाद (भद्रा समाप्ति) पर किया जाएगा। विशेष परिस्थिति में यह प्रातः 09:51 से 10:54 तक (भद्रा पुच्छकाल) में किया जा सकता हैं।

Related post

error: Content is protected !!